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Saturday, 3 March 2012

Story of Haldwani @ Nainital Samachar!

शहर के निकट कई बस्तियाँ तब भी हुआ करती थीं। गोरा पड़ाव में गोरे अपना पड़ाव डाला करते थे। भोटिया पड़ाव में जाड़ों में जोहारी शौका यानी भोटिया अपनी भेड़-बकरियों के साथ झोपडि़याँ बनाकर या छोलदारी तान कर पड़ाव डालते थे। सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भोटियों का वह व्यवसाय समाप्त हो गया। वह भोटिया पड़ाव अब कई मुहल्लों के समूह में बदल गया है। मुख्य भोटिया पड़ाव, जिसे अब जोहार नगर कहा जाने लगा है, में भी शौकों के आलीशान मकान बन गए हैं। वहाँ स्थापित जोहार मिलन केन्द्र में अनेक सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।
सेल्स टैक्स कमिश्नर रह चुके पुष्कर सिंह जंगपांगी बताते हैं कि भोटिया पड़ाव को बसाने और बचाने के लिए लट्ठ चले थे। इस पड़ाव को बनाने में सेठ दिवान सिंह पांगती का बहुत बड़ा योगदान रहा है। व्यापारिक मेलों के हिसाब से सीमान्तवासियों का प्रवास होता था। तिब्बत से सामान लेकर वे पहले जौलजीवी, फिर थल, फिर जनवरी में बागेश्वर में होने वाले मकर संक्रान्ति के मेले में लाव-लश्कर के साथ चलते थे। फिर परिवार-बच्चों को मुनस्यारी में व्यवस्थित कर भाबर की ओर इनका रुख होता था। बागेश्वर से व्यापारियों का दल घोड़े, खच्चर, भेड़, बकरियों के साथ हल्द्वानी, रामनगर, टनकपुर जाता था। जहाँ-जहाँ ये व्यापारी रुकते वही इनका पड़ाव होता था। हल्द्वानी के पड़ाव से व्यापारियों के जानवर गौलापार तक चुगान के लिए जाया करते थे। जनवरी से मार्च तक तीन माह का प्रवास इन व्यापारियों का हुआ करता था। सीमान्त व्यापारियों के इस प्रवास चक्र को देखते हुए अंग्रेज सरकार द्वारा सन् 1912 में 90 साल की लीज पर भोटिया पड़ाव में उन्हें 46 बीघा जमीन उपलब्ध कराई गई थी। यह जमीन किसी संस्था को न देकर पाँच व्यक्तियों को दी गई। भारत- तिब्बत व्यापार बन्द होने के बाद करीब सन् 1970 में जोहार मुन्स्यार में जोहार संघ का गठन हुआ। ..........

Friday, 18 March 2011

कुमाँऊनी होली के कुछ गीत!

भारत विविधता का देश है, यहाँ एक ही त्यौहार मनाने के कई अंदाज हैं। ऐसा ही एक त्यौहार आ रहा है होली, बचपन में मनायी होली को अपनी यादों से निकाल कर उसी बहाने आपसे रूबरू करवा रहा हूँ कुमाँऊनी होली।

फाल्‍गुन के महीने होली का आना अक्‍सर मुझे ले जाता है बहुत पीछे बचपन की उन गलियों में, जहाँ न कोई चिन्‍ता थी और ना ही नौकरी का टेंशन सिर्फ मस्‍ती और हुड़दंग। अपने जीवन की अधिकतर मस्‍त होली मैंने अपने बचपन में ही मनायी और वो भी अपने ‘नेटीव प्‍लेस’ उत्तरांचल में। यहाँ की होली अपने आप में अनुठी होती है, क्‍योंकि यहाँ होली संगीत का उत्‍सव पहले है, रंगों का बाद में। चाहे वो बैठकी होली हो, या खड़ी होली और या फिर महिला होली।फाल्‍गुन के महीने होली का आना अक्‍सर मुझे ले जाता है बहुत पीछे बचपन की उन गलियों में, जहाँ न कोई चिन्‍ता थी और ना ही नौकरी का टेंशन सिर्फ मस्‍ती और हुड़दंग। अपने जीवन की अधिकतर मस्‍त होली मैंने अपने बचपन में ही मनायी और वो भी अपने ‘नेटीव प्‍लेस’ उत्तरांचल में। यहाँ की होली अपने आप में अनुठी होती है, क्‍योंकि यहाँ होली संगीत का उत्‍सव पहले है, रंगों का बाद में। चाहे वो बैठकी होली हो, या खड़ी होली और या फिर महिला होली।


कुमाँऊनी होली के कुछ गीत


जोगी आयो शहर में व्योपारी -२
अहा, इस व्योपारी को भूख बहुत है,
पुरिया पकै दे नथ-वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।
अहा, इस व्योपारी को प्यास बहुत है,
पनिया-पिला दे नथ वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।
अहा, इस व्योपारी को नींद बहुत है,
पलंग बिछाये नथ वाली
जोगी आयो शहर में व्योपारी -२

Sunday, 10 October 2010

Picture Gallery Added!

"Blogs of Johar" team proudly presents some beautiful and vibrant glimpses of Johar Valley. Thanks to Mr. Prashant Joshi (Almora Boy) for his awesome contribution to this picture gallery. You can also contribute to this blog by sending us your photographs of Johar and surrounding areas!

To view these pictures, go to the "Gallery" page by clicking on the menu (Gallery) or on any of the following thumbnails (Images).


" चे च्यवा! "

Tuesday, 5 October 2010

Legends of Johar

"Legends of Johar" - A new blog giving some new and interesting information about the great and extraordinary people from Johar, who have achieved such feats in their life which make us proud to be a Shauka! Come, let's learn and share facts about the Legends of Johar!

" चे च्यवा! "


Wednesday, 22 September 2010

Coming Soon...!

The new sections for the picture, music & video galleries are  coming soon! Please, support this blog by becoming active members, and posting your valuable comments / suggestions.

" चे च्यवा! "