Wednesday 21 March, 2012

Story of Haldwani @ Nainital Samachar - 2

यह तराई-भाबर और सीमान्त के व्यापारियों का मिलन केन्द्र भी थी। सीमान्त के प्रमुख भोटिया व्यापारी भेड़-बकरियों में आलू, सूखे मेवे, खुमानी, अखरोट व तिब्बत से सुहागा, गरम कपड़े लाकर आढ़तियों को बेचते थे। इन शौकाओं को लोग आग्रह के साथ अपने खेतों में ठहराते, ताकि उनकी सैकड़ों बकरियाँ खेतों में चुगान के एवज में कीमती खाद दे सकें। ईमानदारी इतनी थी कि व्यापारी आते-जाते में बगैर रसीद के ही उनके पास अपना धन जमा कर जाते थे। तब लम्बे सफर में चाँदी के भारी रुपयों को ढोना असुविधाजनक था। बाद में कागज के नोटों से सुविधा हो गई। शौका व्यापारी सौ के बड़े नोट के दो टुकड़े कर अलग-अलग डाक द्वारा दो भागों को भेजते थे, एक टुकड़ा खो जाने की स्थिति में दूसरे से रुपया मान लिया जाता था। पहाड़ जाते समय व्यापारी हल्द्वानी से नमक ले जाते थे। नमक की गाड़ी उतरते ही सड़क पर नमक के ढेर को चाटने के लिए गायें जुट जातीं, श्रमिक-पल्लेदार आवश्यकतानुसार नमक उठा लेते। कोई कुछ कहने वाला नहीं था। सदर बाजार में फैले ढेले वाले नमक का बड़ा कारोबार अब सिमट चुका है। नेतराम, शंकरलाल, बाबूलाल गुप्ता परिवारों के पुरखे बंशीधर ने 1930 के करीब इस कारोबार की शुरुआत की थी। एक रुपये में दस सेर नमक आता था। ..........

Saturday 3 March, 2012

Story of Haldwani @ Nainital Samachar!

शहर के निकट कई बस्तियाँ तब भी हुआ करती थीं। गोरा पड़ाव में गोरे अपना पड़ाव डाला करते थे। भोटिया पड़ाव में जाड़ों में जोहारी शौका यानी भोटिया अपनी भेड़-बकरियों के साथ झोपडि़याँ बनाकर या छोलदारी तान कर पड़ाव डालते थे। सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भोटियों का वह व्यवसाय समाप्त हो गया। वह भोटिया पड़ाव अब कई मुहल्लों के समूह में बदल गया है। मुख्य भोटिया पड़ाव, जिसे अब जोहार नगर कहा जाने लगा है, में भी शौकों के आलीशान मकान बन गए हैं। वहाँ स्थापित जोहार मिलन केन्द्र में अनेक सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।
सेल्स टैक्स कमिश्नर रह चुके पुष्कर सिंह जंगपांगी बताते हैं कि भोटिया पड़ाव को बसाने और बचाने के लिए लट्ठ चले थे। इस पड़ाव को बनाने में सेठ दिवान सिंह पांगती का बहुत बड़ा योगदान रहा है। व्यापारिक मेलों के हिसाब से सीमान्तवासियों का प्रवास होता था। तिब्बत से सामान लेकर वे पहले जौलजीवी, फिर थल, फिर जनवरी में बागेश्वर में होने वाले मकर संक्रान्ति के मेले में लाव-लश्कर के साथ चलते थे। फिर परिवार-बच्चों को मुनस्यारी में व्यवस्थित कर भाबर की ओर इनका रुख होता था। बागेश्वर से व्यापारियों का दल घोड़े, खच्चर, भेड़, बकरियों के साथ हल्द्वानी, रामनगर, टनकपुर जाता था। जहाँ-जहाँ ये व्यापारी रुकते वही इनका पड़ाव होता था। हल्द्वानी के पड़ाव से व्यापारियों के जानवर गौलापार तक चुगान के लिए जाया करते थे। जनवरी से मार्च तक तीन माह का प्रवास इन व्यापारियों का हुआ करता था। सीमान्त व्यापारियों के इस प्रवास चक्र को देखते हुए अंग्रेज सरकार द्वारा सन् 1912 में 90 साल की लीज पर भोटिया पड़ाव में उन्हें 46 बीघा जमीन उपलब्ध कराई गई थी। यह जमीन किसी संस्था को न देकर पाँच व्यक्तियों को दी गई। भारत- तिब्बत व्यापार बन्द होने के बाद करीब सन् 1970 में जोहार मुन्स्यार में जोहार संघ का गठन हुआ। ..........