Friday 18 March, 2011

कुमाँऊनी होली के कुछ गीत!

भारत विविधता का देश है, यहाँ एक ही त्यौहार मनाने के कई अंदाज हैं। ऐसा ही एक त्यौहार आ रहा है होली, बचपन में मनायी होली को अपनी यादों से निकाल कर उसी बहाने आपसे रूबरू करवा रहा हूँ कुमाँऊनी होली।

फाल्‍गुन के महीने होली का आना अक्‍सर मुझे ले जाता है बहुत पीछे बचपन की उन गलियों में, जहाँ न कोई चिन्‍ता थी और ना ही नौकरी का टेंशन सिर्फ मस्‍ती और हुड़दंग। अपने जीवन की अधिकतर मस्‍त होली मैंने अपने बचपन में ही मनायी और वो भी अपने ‘नेटीव प्‍लेस’ उत्तरांचल में। यहाँ की होली अपने आप में अनुठी होती है, क्‍योंकि यहाँ होली संगीत का उत्‍सव पहले है, रंगों का बाद में। चाहे वो बैठकी होली हो, या खड़ी होली और या फिर महिला होली।फाल्‍गुन के महीने होली का आना अक्‍सर मुझे ले जाता है बहुत पीछे बचपन की उन गलियों में, जहाँ न कोई चिन्‍ता थी और ना ही नौकरी का टेंशन सिर्फ मस्‍ती और हुड़दंग। अपने जीवन की अधिकतर मस्‍त होली मैंने अपने बचपन में ही मनायी और वो भी अपने ‘नेटीव प्‍लेस’ उत्तरांचल में। यहाँ की होली अपने आप में अनुठी होती है, क्‍योंकि यहाँ होली संगीत का उत्‍सव पहले है, रंगों का बाद में। चाहे वो बैठकी होली हो, या खड़ी होली और या फिर महिला होली।


कुमाँऊनी होली के कुछ गीत


जोगी आयो शहर में व्योपारी -२
अहा, इस व्योपारी को भूख बहुत है,
पुरिया पकै दे नथ-वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।
अहा, इस व्योपारी को प्यास बहुत है,
पनिया-पिला दे नथ वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।
अहा, इस व्योपारी को नींद बहुत है,
पलंग बिछाये नथ वाली
जोगी आयो शहर में व्योपारी -२

Thursday 10 February, 2011

सैफ विंटर गेम्स, बदइंतजामियाँ और पांगती का हश्र!

औली में 31 दिसम्बर को हुई बर्फबारी ने आयोजकों की काली करतूतों को ढँकने का काम किया। 14 जनवरी की रात हुई भारी बर्फबारी ने तो सारा इतिहास दफन कर डाला। 16 जनवरी को खेल समाप्ति के ठीक बाद आयोजन के कर्णधार पूर्व आई.ए.एस. सुरेन्द्र सिंह पांगती ने आर्गेनाइजिंग टीम से इस्तीफा दे दिया। उन्हीं के प्रयासों से ही विदेशी टीमें और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के निर्णायक यहाँ आये थे। शायद पांगती को सैफ खेलों से पहले ही हट जाना चाहिए था, लेकिन वे लम्बे समय से सैफ का सपना देख रहे थे। चमोली में अपनी सरकारी सेवा के प्रारम्भिक दौर से ही वे औली के विकास व स्थानीय युवाओं के लिये रोजगार का जरिया तलाशने के प्रयासों में जुटे रहे थे। विंटर गेम्स फेडरेशन के अध्यक्ष बनने के बाद वे सैफ को भारत व फिर उत्तराखंड में कराने की लाबीइंग में रहे। तत्कालीन एन.डी. तिवारी सरकार ने फंड देने में असमर्थता जताई तो केंद्र से 110 करोड़ रुपये की जुगत करने वाले भी वही थे। उनकी लगन देख एनडी भी मुहिम में शामिल हो गये। लेकिन 2007 में खंडूरी के मुख्यमंत्री बनने के बाद लगातार तीन आचार संहिताओं से कामकाज प्रभावित रहे। फिर निशंक गद्दी पर सवार हुए। तीन मुख्यमंत्रियों के बदलने के साथ, तीन बार खेल भी टले। मगर पांगती ने अकेले सैफ के झंडे को बुलंदी से उठाये रखा और तमाम लालफीताशाही के बीच इन्फ्रास्ट्रक्चर कार्य को आगे बढ़ाने में कामयाब रहे। .................



Friday 21 January, 2011

डब्ल्यूजीएफआई के सलाहकार पांगती का इस्तीफा!

देहरादून, 20 जनवरी (निस)। खेल आयोजन में हुई कथित अव्यवस्था से नाराज विंटर गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (डब्ल्यूजीएफआई) के सलाहकार एसएस पांगती ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

वहीं, डब्ल्यूजीएफ आई के सलाहकार एसएस पांगती ने फोन पर बताया कि खिलाडिय़ों की उपेक्षा के चलते उन्होंने इस्तीफा दिया है।  डब्ल्यूजीएफआई की ओर से उत्तराखंड सरकार के सहयोग से पहली बार दक्षिण एशियाई शीतकालीन खेलों का आयोजन 10 से 16 जनवरी तक देहरादून व औली में किया गया था। देहरादून में 10 जनवरी को रायपुर स्थित महाराणा प्रताप स्पोट्ïर्स स्टेडियम में प्रारम्भ हुए खेलों के दौरान ही तमाम अव्यवस्थाओं का खुल कर प्रदर्शन हुआ। यहां तक कि मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कुछ मामलों को लेकर मंच पर ही प्रमुख सचिव राकेश शर्मा की क्लास ले ली थी, किन्तु एक बार जो गड़बडिय़ां होनी शुरू हुई वह बेकाबू होती गयी। डब्ल्यूजी एफ आई ने खिलाडिय़ों व टीमों के बजाय अपने ऊपर ही खेलों का फोकस बनाए रखा और स्थानीय एजेंसियों को दरकिनार करते हुए बाहरी एजेंसियों को आयोजन का हिस्सा बना दिया। जिन खेलों को प्रदेश की साख के साथ जोड़ कर देखा जा रहा था, वही प्रदेश की साख पर बट्टा लगाने वाले साबित हुए।

दिल्ली के मीडिया पर न्यौछावर डब्ल्यूजीएफआई ने तो उन्हें पूरी सुविधा दी, किन्तु प्रदेश के मीडिया ने सैफ खेलों की कवरेज से हाथ खींच लिये। यहां तक कि अन्तिम समय पर प्रदेश के मीडिया की किसी भी व्यवस्था को करने से मना कर दिया। मजबूरी में सूचना एंव लोकसम्पर्क विभाग को मीडिया के लाने-ले जाने, ठहराने व खाने की व्यवस्था करनी पड़ी। डब्ल्यजीएफ आई ने न तो देहरादून व न ही औली में मीडिया को कोई सूचना दी, यहां तक कि मीडिया वालों को एक-एक परिणाम के लिए दर-दर भटकना पड़ा। देहरादून में तो एक कैंपस की गनीमत रही, किन्तु खराब मौसम में औली में तो हद ही हो गयी, जब डब्ल्यूजीएफआई वाले तो बर्फबारी व हवा से बचने के लिए भूमिगत ही हो गये और अचानक दूसरे दिन के खेल भी स्थगित कर दिए। यह सही है कि इसका कारण खराब मौसम रहा, किन्तु यदि मौसम सही रहता तो कृत्रिम स्नोगन की भी पोल खुल जाती। पांगती के इस्तीफे कई कारण बताये जा रहे हैं, किन्तु यह भी तय है कि सैफ  खेलों के कामनवेल्थ खेलों का खेल बनने के डर से भी उन्होंने अपने को अलग कर लिया है।